पूर्वी भारत में पहली बार कंप्यूटर नेवीगेशन के जरिए घुटना प्रत्यारोपण

रिद्धिमा की जूतियां, दुनिया भर से जुटाए गए बेशकीमती तोहफे, सालों से अलमारी में करीने से रखे थे। कभी सफाई के लिए अलमारी खोलती तो, फिर जूतियों को उसी तरह सजाकर नियत जगह रख देती। अलमारी का दरवाजा बंद करते वक्त उसकी आंखों में दर्द साफ झलकता था। मनपसंद खूबसूरत जूतियां होने के बावजूद, उन्हें पहन न पाने का उसका दर्द मैंने न केवल देखा, बल्कि महसूस भी किया। ये बयान करते हुए मरीज, रिद्धिमा चटर्जी से बेपनाह मोहब्बत करने वाले उनके पति कुंतल चटर्जी की आंखे भर आई थीं। 


कोलकाता : गरियाहाट निवासी इंग्लिश स्कूल टीचर 63 साल की रिद्धिमा चटर्जी (नाम परिवर्तित) पिछले 8 सालों से घुटने में भीषण दर्द से परेशान थी। घुटने में गठिया के लक्षण साफ दिख रहे थे और साल दर साल उसकी हालत खराब होती जा रही थी। पिछले एक साल से तो दर्द इस कदर बढ़ गया था कि टहलना और सीढ़िया चढ़ना जैसे रोजमर्रा के काम भी नहीं हो पा रहे थे। रिद्धिमा, जेहन पर जोर डालते हुए बताती हैं, दिनों दिन अकड़न बढ़ती जा रही थी। चलना फिरना दूभर हो गया था। हर घड़ी लगता था कि जल्दी घुटना प्रत्यारोपण हो जाए और दर्द से छुटकारा मिल जाए। दरअसल, उनकी तकलीफ की एक और वजह, तकरीबन 20 साल पहले एक हादसे में उनकी जांघ की हड्डी में हुआ फ्रैक्चर था, जिसमें हड्डी गलत ढंग से जुड़ गई थी। जब रिद्धिमा के लिए, हालात बेहद मुश्किल होने लगे, तब परिजनों ने मेडिका में डॉ. विकास कपूर से मिलने का फैसला किया। डॉ. कपूर ने एक्स-रे देखने के बाद घुटना प्रत्यारोपण कराने की सलाह दी। दर्द से जल्दी छुटकारा पाने का इससे आसान कोई उपाय भी नहीं था। 
मेडिका सुपरस्पेशलटी हॉस्पिटल में 15 दिसंबर, 2017 को कंप्यूटर नेवीगेशन के जरिये रिद्धिमा की घुटना प्रत्यारोपण सर्जरी (टी.के.आर.) हुई । बताते चलें, कंप्यूटर की मदद से होने वाली सर्जरी (सी.ए.एस.) का इस्तेमाल घुटना प्रत्यारोपण के दौरान इम्प्लांट को बेहतर ढंग से सही जगह प्रतिस्थापित करने के लिए किया जाता है। आमतौर पर 4-5 घंटे तक चलने वाली बेहद जटिल सर्जरी को जाने-माने आर्थोपेडिक सर्जन डॉ. विकास कपूर और उनकी टीम ने महज एक घंटे में ही निपटा दिया। हालांकि डॉक्टरों ने रिद्धिमा को तीसरे दिन ही डिस्चार्ज करने के लिए कहा था, लेकिन वह इसके लिए तैयार नहीं हुईं। फिर उन्हें छठे दिन डिस्चार्ज किया गया। मेडिका अस्पताल समूह के वाइस चेयरमैन सह आर्थोपेडिक्स के ग्रुप डायरेक्टर डॉ. विकास कपूर बताते हैं, रिद्धिमा के घुटने की हालत को देखते हुए बगैर नेविगेशन के घुटना प्रत्यारोपण करना मुमकिन नहीं था। उन्होंने कहा, मरीज, पहले की तुलना में अब कहीं ज्यादा तेजी से रिकवरी कर रहे हैं। हमने, सर्जरी करने के पहले ही श्रीमती चटर्जी को भरोसा दिलाया था कि आपकी घुटने संबंधी सारी दिक्कत दूर हो जाएगी। डॉ. कपूर ने बताया, आर्थोएलाइन ( कंप्यूटर नेवीगेशन की मदद से किया जाने वाला घुटना प्रत्यारोपण) के नाम से जाने जानी वाली इस सर्जरी को पूर्वी भारत में पहली बार अंजाम दिया गया। 
पूर्वी भारत में अपने तरह की इस पहली सर्जरी के फायदे गिनाते हुए डॉ. कपूर ने कहा, इसमें घुटना ज्यादा दिनों तक ठीक ढंग से काम करता है क्योंकि इसमें कंप्यूटर की मदद से इंप्लांट को कूल्हे की धुरी के एकदम सीध में रखा जाता है। नेवीगेशन का खर्च प्रति घुटना 50 से 55 हजार के बीच आता है। रिद्धिमा का पुनर्वास (रिहैबिलिटेशन) भी अपेक्षा पर खरा उतरा। सर्जरी के 24 घंटे के बाद वह अपने घुटने मोड़ सकती थीं। तीन दिन बाद तो वह खुद से बिस्तर से उठने और टहलने लगीं। घर पहुंचने के कुछ दिन बाद वह सीढ़ियां भी चढ़ने लगीं। मेडिका सुपरस्पेशलटी हॉस्पिटल के फिजिकल थेरेपी एवं रिहैबिलिटेशन विभाग की डायरेक्टर कविता रॉय ने बताया, मरीज की रिकवरी सही ढंग से हो रही है। उन्हें घुटना प्रत्यारोपण के बाद की जाने वाली एक्सरसाइज जारी रखने की सलाह दी गई है। 


घुटना प्रत्यारोपण के बाद फिजिकल थेरेपी, पुनर्वास का जरूरी हिस्सा है। रिद्धिमा चटर्जी ने बताया, मुझे कई तरह की एक्सरसाइज करने की सलाह दी गई थी। मैं उसके लिए काफी मेहनत कर रही हूं। मुझे अपने डॉक्टर से सितंबर में मिलना है। स्कूल टीचर होने के नाते वह घर में बैठे रहना नहीं चाहतीं। अपने सभी सहकर्मियों को चौंकाते हुए हुए उन्होंने दो महीने बाद ही स्कूल ज्वाइन कर लिया। अब उनकी जिंदगी की गाड़ी फिर से पटरी पर लौट आई है। रिद्धिमा की जूतियां, दुनिया भर से जुटाए गए बेशकीमती तोहफे, सालों से अलमारी में करीने से रखे थे। कभी सफाई के लिए अलमारी खोलती तो, फिर जूतियों को उसी तरह सजाकर नियत जगह रख देती। अलमारी का दरवाजा बंद करते वक्त उसकी आंखों में दर्द साफ झलकता था। मनपसंद खूबसूरत जूतियां होने के बावजूद, उन्हें पहन न पाने का उसका दर्द मैंने न केवल देखा, बल्कि महसूस भी किया। ये बयान करते हुए रिद्धिमा से बेपनाह मोहब्बत करने वाले उनके पति कुंतल चटर्जी की आंखे भर आईं। 
मेडिका अस्पताल समूह के चेयरमैन डॉ. आलोक रॉय ने कहा, सर्वश्रेष्ठ सेवा सुश्रुषा के लिए हम प्रतिबद्ध हैं। श्रीमती चटर्जी की फिर से सामान्य जीवन जी रही हैं, यह देखकर हमें बेहद खुशी है। इसमें शक नहीं कि घुटना प्रत्यारोपण सर्जरी लगातार विकसित हो रही है। मेडिका का हरसंभव प्रयास होता है कि मरीजों को प्रभावी, सफल और प्रमाण आधारित प्रोसीजर उपलब्ध कराया जाए। अलमारी में सजा कर रखी गई जूतियों की किस्मत शायद फिर से खुल गई है, क्योंकि श्रीमती चटर्जी अब उन्हें पहन सकती हैं। 

इसमें दो राय नहीं कि कोलकाता में पहले भी बड़ी संख्या में घुटना प्रत्यारोपण सर्जरी हुई है लेकिन यह सर्जरी इसलिए अनोखी है क्योंकि पहली बार इसमें कंप्यूटर नेवीगेशन की मदद ली गई। पूर्वी भारत में अपनी तरह का यह पहला मामला है।

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